Wednesday, 13 June 2012


By. SHASHI BHUSHAN MAITHANI  "PARAS "
Editor - YOUTH ICON 
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14-06-2012
Photo- By Vriharsh Raj Tadiyal.

नंदा देवी लोक जात यात्रा -

धार्मिक ,सांस्कृतिक ,एवं सामाजिक यात्रा !

यह दृश्य चमोली जनपद में सप्त कुण्ड का है |दरअसल यहाँ हर 6 वर्ष  "नंदा देवी लोकजात" का आयोजन होता है  | अगर देखा जाय तो  यह यात्रा नंदा देवी राजजात से भी भब्य एवं रमणीक है ,इस यात्रा में भी प्रत्येक गाँव  से नंदा देवी की पवित्र रिंगाल की "छतोली" के साथ ग्रामीण अलग - अलग क्षेत्रों से आकर शामिल होते  हैं | और यह भब्य यात्रा चमोली जनपद के घाट (विकासनगर ) ब्लाक में माँ नंदा देवी के सिद्ध पीठ कुरुड़ से यह यात्रा आरम्भ होती है ,  कुरुड़ से माँ नन्दा देबी की डोली के नेतृत्व में हजारों श्रद्धालु गाँव - गाँव भ्रमण के पश्चात रावण की तपस्थली "बैराश कुण्ड",दाणी माता ,भुवनेश्वरी मंदिर ,  पगना , लुन्तरा ,घूनी ,एवं अंतिम गाँव रामणी होते हुवे बालपाटा बुग्याल , दंन्यनाली बुग्याल ,एवं  सिम्बाई बुग्याल के बिभिन्न पडावों को पार कर सप्त कुण्ड पहुंचती है | 

यहाँ सात विशाल जल कुण्ड हैं जो लगभग 5 किलोमीटर क्षेत्र में फैले हैं ,जिसकी वजह से ही इस क्षेत्र को "सप्त कुण्ड" कहा गया है | बेहद खूबसूरत एक के बाद एक सीढ़ीनुमा सात कुण्ड (सप्त कुण्ड ) के दर्शन इस लम्बी दूरि की यात्रा का सबसे सुखद क्षण होता है |धार्मिक मान्यतानुसार कहा जाता है कि यह सात कुण्ड "सप्त ऋषि" के रूप में यहाँ विद्यमान हैं , और यही पर श्रृष्टि की रचना भी हुई थी | सैकड़ों रंबिरंगी छतोलियाँ एक साथ लेकर श्रद्धालु इन पवित्र कुंडों की परिक्रमा करते हैं |तत्पश्चात श्रेष्ठ कुण्ड के एक छोर पर सभी रिंगाल की पवित्र छातोलियों को रख दिया जाता है , फिर गौड़ ब्राहमणों के द्वारा "छतोली" पर से चुनरी , चूड़ी , बिदिया , एवं अन्य खाद्य सामग्री को उतारा जाता है और सब भेंट (सम्लौण) माँ नन्दा को समर्पित कर दी जाती है , कुछ लोग हिमालय में स्थित इन पवित्र कुंदो के तट पर अपने पितरों को तर्पण भी देते हैं कहते हैं यहाँ पिंड दान करने से जन्म जन्मान्तर तक तर जाते हैं |   

यह यात्रा विधिवत रूप से सैकड़ों ग्रामो का पैदल भ्रमण करने सहित कुल 16 दिन में पूरी की जाती है, जिसकी लम्बाई लगभग 220 किलोमीटर (आना - जाना ) बताई जाती है | इस यात्रा मे घाट (विकासनगर ) ब्लाक , दशोली ब्लाक ,बिरही निजमूला घाटी के लगभग सभी गाँव शामिल होते हैं | 
पहाड़ में नंदा देवी उत्सव दरअसल हिमालयी जनमानस का पारिवारिक एवं पारम्परिक सौहार्द का उत्सव है | हिमालय की यह धार्मिक ,सांस्कृतिक ,एवं सामाजिक यात्रा श्रद्धा , आस्था एवं विश्वाश की त्रिवेणी भी है | 

मेरे लिए यह यात्रा जीवन भर के लिए स्मरणीय -  

चमोली जनपद के घाट (विकासनगर ) ब्लाक में माँ नंदा देवी के सिद्ध पीठ कुरुड़ से यह यात्रा आरम्भ होती है , वर्ष 2006 में मैंने भी इस पूरी यात्रा का वीडियो फिल्मांकन किया हुवा है , आज तक चैनल पर EXCLUSIVE  आधे - आधे घंटे के स्पेशल एपिसोड भी  चलाये गए थे | यह यात्रा इस लिए भी सुखद एवं भब्य है क्योंकि इसमें राजनीती अभी तक नहीं घुली है , कोई सरकारी बजट जारी नहीं होता है , समझ लो की जिस दिन इस यत्रा में भी सरकारी हस्तक्षेप हो जायेगा , इसका हाल भी नंदा देवी राज जात जैंसा ही हो जायेगा | आप देखते जाइएगा आने वाले समय में लोग कुम्भ घोटाले की जांच की तरह ही राज जात घोटाले की जांच के लिए भी सदन से लेकर सडकों पर तक झंडा डंडा उठाये हुवे नजर आयेंगे | पहाड़ में नंदा देवी उत्सव दरअसल लोगो का पारिवारिक एवं पारम्परिक सौहार्द का उत्सव है जो कि अब सरकारी कार्यक्रम बन गया , आने वाले समय में खतरा इस बात का भी है कि, कही हमारी यह धार्मिक ,सांस्कृतिक ,एवं सामाजिक यात्रा सरकारी चकाचौंध और भारी धन वर्षा के बीच अपना वजूद ही ना खो दे | 

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2 comments:

  1. शशि भूषण मैठाणी जी बहुत अच्छी जानकारी॥

    पर मुझे आपके लेख और शोध पर सन्देह हो रहा है क्योँकि नन्दा लोक जात यात्रा प्रत्येक 6 बर्ष नही बल्कि हर बर्ष कुरुड़ गाँव से मनाया जाता है मै इसलिए कह रहा हूँ कि यह यात्रा प्रतिवर्ष मेरे पैत्रिक गाँव सोल डुँग्री से होकर गुजरती है और हर वर्ष मैँ माँ नन्दा के दर्शन अपने गाँव मे करता हूँ।

    मैँ आपसे विनती करता हूँ कि से लेख मे संशोधन करेँ।

    धन्यवाद

    http://ndrjyatra.blogspot.com/2011/09/blog-post.html

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    1. महेंद्र जी मै सर्व प्रथम धन्यबाद,आपके लिए | बताना चाहूँगा कि नंदादेवी खाशकर उत्तराखंड के चमोली जनपद के लोगो के अलावा कुमायूं के अल्मोड़ा ,पिथौरागढ़ , एवं नैनीताल के जन्मनासों की ईष्ट देवी है , बहुत ही ममत्वा का रिश्ता रखते हैं यहाँ के वाशिंदे नंदा से कोई नंदा को बेटी तो कोई माँ का नाता बांये हुवे नंदा से | आपको बताना चाहूँगा कि हर क्षेत्र में नन्दा को अलग अलग रूप में पूजा जाता है |
      1 वर्षीय नंदा उत्सव - नन्दा पूजा एवं उत्सव को भी भिन्न - भिन्न नाम दिए गए हैं , जैंसे प्रत्येक एक वर्ष में आयोजित होने वाले उत्सव को नंदा पाति , ब्यूड़ा पाति , स्योला पाति , या नंदा कौथिग के नाम से वार्षिक उत्सव मनाये जाते है | जो कि कमोबेश चमोली के दशोली , घाट , एवं जोशीमठ ब्लाक के अधिकांश गांवो में प्रतिवर्ष भाद्रपद कि नंदा अष्टमी को यह वार्षिक पर्व मनाया जाता है जो कि चमोली के मैठाना और सिद्ध पीठ कुरुड़ में भी बड़े ही भब्य उतसव के रूप में मनाया जाता है | कुरुड़ से दो डोलिया इस पर्व पर भ्रमण पर निकलती है एक तो बाल्पता तक जाती है ,तो दूसरी बधाण क्षेत्र से होकर बेदानिकुंद तक जाती है , बधाण की डोली 6 माह बाद मूल मंदिर कुरुड़ पुन: लौटती है |
      3 वर्षीय नंदा उत्सव - यह उत्सव जोशीमठ एवं दशोली ब्लाक के दर्जनों गावों द्वारा समोहिक रूप से मनाई जाती ,इस यात्रा को फूला नारायण नंदा जात कहा जाता है | भर्की उर्गम से आरम्भ होकर यह बेहद दुर्गम एवं रोमांचक यात्रा बंशी नारायण पहुचती है जहां दूसरी ओर पीपलकोटी से आने वाला दल भी यहाँ यात्रा में शामिल हो जाता है जिससे यह हिमालयी यात्रा बृहद रूप ले लेती है , दूसरे दिन नंदा देवी के जैकारों के बीच यात्रा पांडव शेरा नंदी कुण्ड के लिए प्रस्थान करती है इस यात्रा को दो नौजवान सामाजिक कार्यकर्त्ता लक्ष्मण सिंह नेगी व जगदम्बा प्रसाद मैठाणी "JP" अपने ब्यक्तिगत प्रयाशों से भी ब्यापक रूप विगत वर्षों से देते हुवे आ रहे हैं | इस यात्रा में भी रन बिरंगी रिंगाल की छतौली के साथ श्रद्धालु नन्दा देवी को भेंट लेकर हिमालय तक जाते हैं |
      6 वर्षीय यात्रा - इस यात्रा को नंदा देवी लोक जात यात्रा कहा जाता है , यह भी नन्दा राजजात यात्रा की भाँती विशाल यात्रा है , यह यात्रा घाट के कुरुड़ स्थित नंदा देवी के सिद्ध पीठ मंदिर से आरम्भ होती है जो 16 दिनों के बिभिन्न पड़ावों को पार कर सप्त कुण्ड पहुचती है , बिस्तार पूर्वक वर्णन कृपया पोस्ट में पढियेगा | 12 वर्षीय यात्रा -
      इस यात्रा को नंदा देवी राज जात यात्रा कहा जाता है जो की नौटी के नंदा श्रीयंत्र से आरंभ होती है , नंदा के पुजारी मैठाणी ब्राहमण होते हैं | इस यात्रा में में चार सिंग वाला बकरा यात्रा का प्रतिनिधित्वा करता है , लेकिन यह यात्रा भी तभी पूर्ण मानी जाती है जब इसमें बधाण क्षेत्र के वाण गाँव में कुरुड़ की नंदा डोलिया ,लासी के कौट्या जाख देवता , मैठाणा का कटारा नंदा निशान सहित सैकड़ों गांवो की छतोली शामिल होती है | वही कुमायूं के देव निशान भी इस यात्रा में शामिल होते है | फिर यह यात्रा बेदनी कुण्ड , रूप कुण्ड होते हुवे होमकुंड पहुंचती है जहां यह यात्रा संपन्न हो जाती है |
      कुल मिलाकर अगर देखा जाय तो नंदा किसी गाँव विशेष की देवी मात्र नहीं है , यह हिमालयी क्षेत्र की सामूहिक यात्रा है , और अगर में यह कहूँ कि यह यह विगत काल में सीमा सुरक्षा यत्र रही होगी जिसे बाद में धार्मिक , पारंपरिक एवं सामाजिक रूप दे दिया गया होगा , तो मेरा यह कथन अतिशयोक्ति ना होगा | -
      शशि भूषण मैठाणी "पारस " सम्पादक YOUTH ICON देहरादून

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