By- Prayag Pande
Prayag Pandeश्री शशि भाई जी ! आपने श्री नंदा देवी लोक जात यात्रा पर बहुत अच्छी और ज्ञान बर्धक जानकारी दी है | इसके लिए आपका धन्यवाद |
दरअसल भाई जी ! नंदा देवी जी और उत्तराखंड वासियों मे अनंत काल से एक भावनात्मक आत्मीयता है | श्री नंदा देवी सम्पूर्ण उत्तराखंड मे प्रतिष्ठित और पूज्य हैं | हिमालय पर्वत अनंतकाल से शिव और पार्वती जी के निवास स्थान माने गए हैं | पुराणों मे एक हिमालय राजा का उल्लेख है | पार्वती जी को हिमालय राज की पुत्री बताया गया है | गिरिजा ,गिरिराजकिशोरी ,शैलेश्वरी और नंदा आदि पार्वती के ही अन्य नाम बताये गए हैं | हिमालय के अनेक शिखरों के नाम नंदा से ही हैं | जिनमें नंदा देवी ,नंदा भनार , नंदा खानी . नंदा कोट और नंदा घुघटी आदि प्रमुख हैं | प्राचीन पौराणिक ग्रन्थों मे नंदा पर्वत को हिमाद्री ,मेरु ,सुमेरु आदि नामों से सम्बोधित किया गया है | मानसखंड और केदारखंड जैसे ग्रन्थों मे इसे नंदादेवी के नाम से पुकारा गया है |
मानसखंड मे नंदा पर्वत को नंदा देवी का निवास स्थान बताया गया है | हिमालय की सबसे ऊंची चोटी नंदादेवी को नंदा , गौरी और पार्वती जी का रूप माना जाता है | नंदा को शक्ति रूप माना गया है | शक्ति की पूजा नंदा , उमा , अम्बिका ,काली , चंडिका ,चंडी ,दुर्गा ,गौरी ,पार्वती ,ज्वाला ,हेमवती ,जयंती ,मंगला ,काली और भद्रकाली के नाम से भी होती है |
उत्तराखंड के राजवंशों मे नंदा की पूजा कुलदेवी के रूप मे होती आई है | कुमाऊँ का राजवंश नंदादेवी को तीनों लोकों का आनन्द प्रदान करने वाली शक्तिरूपा देवी के रूप मे पूजता था | जबकि गढ़वाल के राजाओं ने नंदा देवी को राजराजेश्वरी के नाम से प्रतिष्ठित किया | यही कारण है कि उत्तराखंड मे अनेक स्थानों पर नंदा देवी के मंदिर हैं | हर साल नंदा देवी के मेलो से लेकर नंदादेवी लोक जात यात्रा और नंदा जात यात्रा के रूप मे श्री नंदा देवी को पूजने की एक समृद्ध परम्परा उत्तराखंड मे कई सदियों से अनवरत चली आ रही है |
नंदा देवी उत्तराखंड की साझा संस्कृति , समसामयिक चेतना और एकता का प्रतीक हैं | नंदादेवी के निमित्त उत्तराखंड के विभिन्न हिस्सों मे समय -समय पर होने वाले अनेक उत्सवों मे पहाड़ की समृद्ध लोक संस्कृति की गहरी जड़ें , धार्मिक विश्वास एवं परम्पराएँ जुडी है | लोक जीवन के आधार स्तंभों पर पाश्चात्य संस्कृति के बढ़ते प्रभावों के वावजूद पहाड़ के धार्मिक लोक पर्वों के प्रति यहाँ के आम लोगों के उत्साह और श्रद्धा मे कोई कमी नहीं आई है | आज भी हमारे उत्तराखंड वासियों को नंदादेवी समेत सभी चौतीस करोड़ देवी - देवताओं के प्रति अपार श्रद्धा और विश्वास है | तभी तो इतना सब होने के वावजूद इसे अभी भी देवभूमि कहा जाता है | अपनी तरफ से हमारे नेताओं ने तो इस देवभूमि को कुरुक्षेत्र बनाने मे कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी है | लेकिन मित्र ! याद रखियेगा सत्ता की हवस मे इस पवित्र देव भूमि को कलंकित करने वाले कुर्सी प्रेमी नेताओं को प्रकृति कभी माफ़ नहीं करेगी | सो , प्रकृति के न्याय की प्रतीक्षा कीजिये |
Wednesday, 13 June 2012
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