Tuesday, 29 May 2012

**वह सुर्ख लाल रंग की रंगत के साथ स्वप्न परियों को अपने इर्द - गिर्द रीझने पर मजबूर कर रहा है आज भी ...............!
** इस निर्लज्जता के शिखर के दोषी अकेले इस बुजुर्ग नेता को ही नहीं ठहराया जा सकता है................................. |

चर्चा कर रहा हूँ उस जर जर हो चुके बिरासत की जो आज नहीं तो कल इतिहास बन ही जायेगा उसके योगदान को क्या आप और क्या हम कोई भी नकार नहीं सकते है , आज उसी के ईज्जत पर बन आई है ..किसी ने इस का जबाब कुछ यूँ दिया कि जनाब की इज्जत पहले भी कौन सी थी ? .. दूसरा बोला स्वर्ग भी यहीं तो नरक भी यहीं हैं सभी को पाप पुण्य का हिसाब यहीं , इसी जन्म में चुकता करना पड़ता है | फिर मैने भी कहा मृत्यु लोक की यात्रा तो मरणोपरांत चार जीवित कन्धों पर सवार होकर करवाई जाती है , वह तो अदभुद ही जीव है जो एक अलग ही जिजीविषा को लिए हुवे आज भी जीने को आतुर है , जो अभी से जीवित ही, एक नहीं चार चार कन्धों पर हर रोज सवार हो कर यात्रा कर रहा है , या यूँ कहें कि बेचारों के कन्धों को हर रोज तोड़ रहा है | तभी मेरे बगल में खड़े युवा साहित्यकार भाई मुकेश नौटियाल जी अपनी लोक भाषा में बोले कि- ( "भई दूसरों तें उपदेश देण आशान च , पर यू बथावा कि जब म्येरी ही जननि मी थें त , घास नि छे डल्लीईं अर वे बुड्ढये तें धाद्दी लगाणी च ..अर वेक अग्ने - पिछ्ने "लबराट" छै कनि त भई कमी त म्येरी ह्वे ना ज्येन अपणी जनानी बस नि कर साकी " |) अर्थात मुकेश जी का कहने का मतलब है कि जब मेरी बीबी ही मुझे छोड़ कर उस बुड्ढे पर फ़िदा हो रही है, और उसके साथ लीला रचाने को तैयार है तो उसमे अपनी पत्नी का पति होने के नाते पहला दोष तो मेरा ही है, भाई इसमें उस बेचारे का क्या कसूर |
बेशक आज मै भी यही कहना चाहता हूँ कि वे हमारे क्षेत्र के ही नहीं बल्कि पूरे देश के शीर्ष और बुद्दिमान नेता रहे है और फ़िलहाल हैं भी ! जाहिर सी बात है कि जहां गुड होगा वहाँ मधु मक्खियाँ लालच के कारण स्वत: ही मंडरायेंगी , ऐसा ही उनके साथ भी हुवा होगा , उन्होंने कभी भी किसी को पाने कि चाहत नहीं रखी होगी | आप खुद ही सोचियेगा कि जिस उम्र में लोग शरीर को त्यागने लगते हैं ,या कुछेक बचे खुचे लोगों का, पूरा का पूरा शरीर जार - जार हो चुका होता है , और उसी अवस्था में यह बुजुर्ग नेता आज भी चेहरे में गजब के सुर्ख लाल रंग की रंगत के साथ स्वप्न परियों को आज भी अपने इर्द - गिर्द रीझने पर मजबूर कर रहा है | तो अंदाजा लगाएगा कि भरी पूरी जवानी में क्या हाल रहा होगा , तब बेचारे उस वक्त नहीं रख पाए होंगे अपनी इन्द्रियों को बस में जिसका खामियाजा वे आज भुगत रहे हैं | 
लेकिन हमें यह भी स्वीकारना होगा कि इस निर्लज्जता के शिखर के दोषी अकेले इस बुजुर्ग नेता को ही नहीं ठहराया जा सकता है |

शशि भूषण मैठाणी "पारस" 
9412029205, 9756838527