नन्दादेवी यात्रा को लोक-पारम्परिक पूजा तक ही सीमित रहने दें ।
हिमालयी कुम्भ की नहीं बल्कि राजनीतिक कुम्भ की ज्यादा आहट नंदा देवी राजजात यात्रा में ।
"नंदा देवी राजजात यात्रा के व्यापक स्तर के बजाय सरकार को हर वर्ष सैकड़ों गाँवों में नन्दाष्टमी से आयोजित होने वाले नन्दा उत्सवों को ज्यादा प्रोत्साहन देना चाहिए जो कि तीन दिन से लेकर एक सप्ताह तक के नन्दा उत्सव होते हैं , जो सिर्फ विभिन्न गांवो की अपनी - अपनी सीमाओं तक ही सीमित होती हैं । जिसमे किसी भी तरह के जोखिम की संभावना न के बराबर रहती है । और इससे राज्य के सैकड़ों गांवों के पारम्परिक धार्मिक तीर्थाटन को मजबूती हिमांचल प्रदेश के दशहरा पर्व , महराष्ट्र के गणपति उत्सव आदि की तर्ज पर मिल सकेगा और नंदा पाती , स्योलापाती ,ब्युडा पाती ,नन्दा कौथिग , नन्दा लोकजात ,हर वर्ष आयोजित होने वाले उत्सव हैं " ।
आज मुख्यमंत्री बहुगुणा जी ने एक जोरदार अपील की है नंदा देवी राजजात के सन्दर्भ में , उन्होंने नंदा देवी राजजात उत्सव को बड़े ही शादगी व पारम्परिक तरीके से अपने - अपने क्षेत्रों अर्थात सीमित ग्रामीण क्षेत्रों की सीमाओं के अन्तर्गत मनाने की अपील पर्वतीय समाज के लोगों से की है ।
मुख्यमन्त्री की जनता से की गई इस अपील पर , मुझे ज्यादा ख़ुशी हुई , वह इसलिए कि मैंने अपने 18 जून को लिखे गए अपने ब्लॉग में सबसे पहले यही चिंता ब्यक्त की थी , कि अब हमारे सामने बेहद निजी लोक-पारम्परिक पूजा जो कि कुछ ही गांवों की है , जिसे अब राजनीतिक चतुराइयों के साथ विश्व मानचित्र पर उकेरने की तैयारी में अरबों रूपये को ठिकाने लगाने का खेल शुरू हो गया है और हिमालय में यात्रियों को दी जानी वाली सुख - सुविधाएं सिर्फ सरकारी फाईलों में ही सजी रहेंगी ।
मैंने अपने लेख में इस बात पर चिन्ता व्यक्त की थी कि अगर केदार नाथ जैंसा हाल हुआ तो सरकार की क्या ऐसी विभीषिका से निपटने की कोई तैयारी है भी या नहीं ? आखिर आप किस आत्मविश्वास के भरोशे देश ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया से लोगों को यहाँ दुर्गम हिमालयी यात्रा में शामिल होने के लिए आमंत्रित कर रहे हो ?
मै " अमर उजाला " का विशेष धन्यवाद ज्ञापित करूँगा कि उन्होंने तुरन्त इस मुददे की गम्भीरता को भाँपते हुवे सबसे पहले उठाया । अमर उजाला ने 19 जून को ही मेरे ब्लॉग का हवाला देते हुए खबर को प्रकाशित किया था । जिसे आप इस लिंक पर पढ़ सकते हैं -
और मीडिया को इस समय इस मुददे को पुरजोर तरीके से और अधिक व्यापकता के साथ उठाने की जरुरत है , मै बार - बार कह रहा हूँ कि नन्दा देवी पूजा हिमालयी क्षेत्रों खाशकर चमोली , अल्मोड़ा , नैनीताल आदि जनपदों के कुछ ही गांवों की बेहद निजी ,पारंपरिक व दोषमुक्त पूजा है । जिसे नंदा पाती , स्योलापाती ,ब्युडा पाती ,नन्दा कौथिग , नन्दा लोकजात , एवं नन्दा राजजात के रूप में मनाये जाने का विधान है परन्तु यह किसी एक गाँव से संचालित होने वाली यात्रा नहीं है बल्कि जिसे आज कुछ तथाकथित राजनीतिक पहुँच रखने वाले विद्वानों द्वारा बहुप्रचारित किया जा रहा है । ऐसे भ्रामक स्थिति में कई बार तो टकराव की स्थिति भी क्षेत्र बन रही हैं , खाशकर चमोली जनपद के घाट विकासनगर में, जंहा वाकही नंदा देवी का सिद्ध पीठ मन्दिर मौजूद है और हर वर्ष नंदा उत्सव और नंदा लोकजात यात्रा को बेहद ही पारम्परिक व धार्मिक अनुष्ठान के साथ मनाया जाता है ।
अब जरुरत है एक ऐसी विकास परक सोच की जो हिमालयी पर्यावरणीय संरक्षण के साथ आगे बढे। नंदा देवी राजजात यात्रा के व्यापक स्तर के बजाय सरकार को हर वर्ष सैकड़ों गाँवों में नन्दाष्टमी से आयोजित होने वाले नन्दा उत्सवों को ज्यादा प्रोत्साहन देना चाहिए जो कि तीन दिन से लेकर एक सप्ताह तक के नन्दा उत्सव होते हैं , जो सिर्फ विभिन्न गांवो की अपनी - अपनी तक में सीमित होती हैं । जिसमे किसी भी तरह के जोखिम की संभावना न के बराबर रहती है । और इससे राज्य के सैकड़ों गांवों के पारम्परिक धार्मिक तीर्थाटन को मजबूती हिमांचल प्रदेश के दशहरा पर्व , महराष्ट्र के गणपति उत्सव आदि की तर्ज पर मिल सकेगा और नंदा पाती , स्योलापाती ,ब्युडा पाती ,नन्दा कौथिग , नन्दा लोकजात ,हर वर्ष आयोजित होने वाले उत्सव हैं । पर सरकार को किसी भी गाँव विशेष को खाश आर्थिक मदद देने के बजाय नंदा उत्सव वाले गांवों को चिन्हित कर वहाँ अच्छी सड़कें ,बिजली पानी व स्वास्थ्य सेवाएं मुहैय्या करवानी चाहिए । ऐसा करने से मात्र एक क्षेत्र के बजाय भिन्न - भिन्न गांवो को सरकारी योजनाओं का लाभ भी मिल सकेगा । साथ ही चार धामों पर बढ़ते जनदबाव में भी भारी कमी आ सकेगी और देश विदेश से आने वाले श्रद्धालु सुनियोजित एवं व्यवस्थित तरीके से उत्तराखंड में भ्रमण भी कर सकेंगे । केदारनाथ में इस महाप्रलय के लिए अनियोजित यात्रा को ही सबसे ज्यादा जिम्मेदार माना जायेगा । और अब आने वाले समय में नन्दादेवी राजजात यात्रा के लिए भी सरकार को गम्भीरता से सोचने की जरुरत है ।
लेख - शशि भूषण मैठाणी "पारस" स्वतन्त्र पत्रकार ।
09412029205, 09756838527
shashibhushan.maithani@gmail.com
No comments:
Post a Comment